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देवी वैभवाश्चर्य अष्टोत्तर शत नाम स्तोत्रम्

धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा ॥ १२ ॥

देवी माहात्म्यं दुर्गा सप्तशति प्रथमोऽध्यायः

अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति।।

देवी माहात्म्यं दुर्गा सप्तशति अष्टमोऽध्यायः

अति गुह्यतरं देवि ! देवानामपि दुलर्भम्।।

Oh Parvathi, you decide how finest to keep it a solution As just by chanting this prayer on Kunjika, we will manifest Loss of life, or attraction or make people today slaves or even make matters motionless

न कवचं नार्गला-स्तोत्रं, कीलकं न रहस्यकम्।

सरसों के तेल का दीपक है तो बाईं ओर रखें. पूर्व दिशा की ओर मुख करके कुश के आसन पर बैठें.

धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा॥

देवी माहात्म्यं दुर्गा सप्तशति द्वादशोऽध्यायः

ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।।

देवी माहात्म्यं दुर्गा सप्तशति सप्तमोऽध्यायः

न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा।। । more info इतिश्रीरुद्रयामले गौरीतंत्रे शिवपार्वती संवादे कुंजिकास्तोत्रं संपूर्णम् ।

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